सहसा एक फूल गिरा
कई रंग गिरे डाल से
नए रंग उगे
आसमान
सफेद बादलों से घिरा
नन्हीं चिड़िया फूलों का रस ले उड़ी
अगर तुम खोलोगे इस खिड़की को तो देख पाओगे
बाहर जो घटित हो रहा है
जैसे जीवन हर पल कुछ कहता है
मैं प्रकृति को सुनती हूं
अक्सर मेरी उदास शाम को वो भर
देती है अपने रंगों से
रात की कालिख में उग आते हैं सफेद गुलाब
झरते हैं अमलताश के फूल
हम बांसुरी की तरह हैं
हमारे भीतर का संगीत
बजता रहता है
हम पर्वत की तरह हैं
हमारी प्रतिध्वनि
हमसे ही टकराकर लौट आती है
मैं सुनती हूं रात के इस अंधेरे में पृथ्वी के गीत
ये गीत बचा रहे
रंग बचा रहें
तुम बचे रहो प्रेम

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